रात भर

अरुणिता
By -
0

पात से बूंद सी

आंखें झरती रही रात भर

पानी बरसता रहा

बिजली कड़कती रही रात-भर



बीती बातों का समन्दर

उमड़ता रहा रात भर

मैं एकाकी स्वंय से लड़ती

तकिया भिगोती रही रात भर



सिरहाने रखी थी

जो फोटो तुम्हारी

उसी को निहारती

बतियाती रही रात भर



बाबरी सी नाचती रही

सितारे सजाए मांग में

अपनी ही बातों से

भीगती रही रात-भर



नज़रें द्वार पर टिकाए

चौंककर देखती रही

आंचल सिर से

सरकता रहा रात भर



वायदा करके भी तुम

क्यों आए नहीं

मेघ गरजते रहे

मैं तड़पती रही रात भर।



सुधा गोयल

290-ए, कृष्णानगर, डा दत्ता लेन,

बुलंद शहर, उ०प्र०

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Out
Ok, Go it!