जिंदगी कहाँ गई

अरुणिता
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जिंदगी वही की वही रह गई

जहा से शुरु वही ख़तम हो गई

सुबह से अब धीरे धीरे शाम हो गई

रात बीती और अब सुबह हो गई ।।


जिन्दगी आज अब औ कल हो गई

न जाने कहा जिंदगी गुमशुदा हो गई

मिली थी तो हस कर गले से लगाया

न जाने जिंदगी अब कहा खो गई ।।


अरे यार ये तो बता दो हमे

मिले जिंदगी तो दिखा दो हमे

हमे पूछनी है एक बात उससे

क्या से क्या सपने दिखा गई हमे ।।


तु पाबंद है अपने उसूलो की

आकर उसूलो को बता कर गई

मै खड़ा था भीड़ मे खड़ा ही रहा

तू आई दिखी पर न जाने कहा खो गई ।।


यार ये जिंदगी भी है तमाशे की जैसी

आई और तमाशा दिखा कर गई

मै खड़ा भीड़ मे तमाशा देखता ही रहा

हसी मुस्कराई फिर न जाने कहा को गई ।।

उत्तम कुमार तिवारी "उत्तम"
३६१ " का पुराना टिकैत गंज
लखनऊ, उत्तर प्रदेश


 

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