सब कुछ कुर्बान कर आये

अरुणिता
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 मेरे भाई कलाई के राखी की,

लाज काहे तुम रख नही पाये।

भाभी को  देकर  सिंदूर  दान,

दान सिंदूर का कर तुम आये।

 

पापा के बहते आँसू पत्थर हो,

हृदय को तो वो छय कर जाये।

माँ तो फिर बस माँ होती भाई,

कोख सुनी कर क्यूँ चले आये।

 

मुनिया के गुड़िया  की  चूनरी,

लेकर तुम क्यूँ चले नही आये।

राजू रोते रोते बस यही कहता,

पापा अभी तक घर नही आये।

 

कैसे कह दू भईया मैं सब  को,

भाई सबकुछ कुर्बान कर आये।

सोमेश देवांगन

गोपीबंद पारा पंडरिया

कबीरधाम(छ.ग.)

 

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