राही

अरुणिता
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भूले भटके पथ के राही

थी तुम्हारी कौन सी चाह

पूरा जीवन किया तुमने निवाह

फिर भी रह गए करके आह

 

किसका अनुसरण तुम करते रहे

लेते रहे तुम किस से प्रेरणा

प्राण घातक तुमने कष्ट सहे

फिर भी न पाए सांत्वना

 

जिज्ञासा की कौन सी सरिता

तुम मन में अपने बहाते रहे

बुझ न सकी जिज्ञासा की अग्नि

पूरा जीवन उस में नहाते रहे

 

किया था कौन सा संकल्प तूने

जिसका न कोई था विकल्प

चाहा था कौन सा सौंदर्य तुमने

कि  हो गया तुम्हारा कायाकल्प

राजीव कुमार

बोकारो , झारखण्ड

 

 

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