बहुत से ख्वाब पलकों में,
हमने बरसों संजोए रखा है।
होते देख कामयाब औरों को,
आंखों से मेरे,झलक जाता हैं।।
हमने उम्मीदों के चिरागों को
आंखो में अभी तक जिंदा रखा है।
कभी तो होंगे ,अधूरे ख्वाब पूरे
उन्हें सिद्दत से संजो के रखा है।।
जब अपने फर्ज दारी का
मुझे आहट सा होता है।
पलकों में ही ख्वाब सारे
कहीं सिमिट सा जाता हैं।।
पूरा करने को, ख्वाहिशें अपनी
दिल नित नए ख्याल बुनता है।
जाने कब दिन कटे औ रात हो जाए
अमल हो ख्वाब, यहीं प्रयास करता है।
-प्रियंका त्रिवेदी
बक्सर, बिहार