बात 2008 की है । उन दिनों में मैं छोटा मोटा ज़ेवर पहन कर रखती थी। मैं बतौर अध्यापिका एक विद्यालय में कार्यरत थी ।एक दिन मुझे बैंक में कुछ काम था तो मैंने स्कूल की छुट्टी के बाद वहाँ जाने का फ़ैसला किया ।स्कूल की समाप्ति के बाद मैं सीधा बैंक की ओर चल दी । बैंक का काम ख़त्म करके मैं जैसे ही बाहर निकली एक २४-२५ साल का लड़का भागते हुए आया और बोला “मैडम ..! उधर एक साहब आप को बुला रहे हैं ।”मैंने देखा कि एक पुलिस अफ़सर कुछ दूरी पर बैंक के पास ही खड़ा हुआ था, मै उनके पास गई और बुलाने का कारण पूछा. उसने अपना आईडी दिखाया और कहा ….”मैडम… आप ने जो गहने पहने हैं उन्हें अपने बैग में रखे। बाज़ार में कुछ भी हो सकता है “। मैंने उनका धन्यवाद किया और अपनी चेन बैग में रख दी और जाने लगी । “अरे नहीं ,,,अंगूठी भी रखें और कानो के भी रखे।”इतना कह कर सतर्कता दिखाते हुए उन्होंने एक और आदमी को भी रोक लिया था जिसने चेन पहनी हुई थी ,वह उनके साथ मिला हुआ था ।कुल तीन आदमी हो गए थे अव मुझे समझ आ रहा था कि मैं घेर ली गई हूँ ।अन्दर से दिल घबराने लगा कि कुछ भी हो सकता है ,लेकिन मैंने स्वयं को सँभाल लिया और उन्हें इस बात की भनक भी नहीं लगने दी कि मैं उनके इरादे भाँप गई हूँ । सबसे पहले मैंने धूप का चश्मा पहना और फिर जैसे जैसे वे कह रहे थे मैं करती जा रही थी । कंगन पर बात आ कर अटक गई वो पेच वाला था और पेच खुल नहीं रहा था ।मैं जानबूझकर धीरे-धीरे खोलने का प्रयास कर रही थी इतने में मोबाइल बज उठा मैंने कहा” मै जरा बात कर लूँ “। उन्होंने कहा कि” कर ले “।फ़ोन पर बात करते हुए साथ साथ मैं पेच खोलने का प्रयास भी कर रही थी।अब तक उन्हें पूरा विश्वास हो गया था कि जैसे जैसे वह कह रहे हैं मैं कर रही हूँ ।मैं इतना जान चुकी थी कि जल्दबाज़ी में उठाया गया एक भी कदम मेरे लिए भारी पड़ सकता है इसलिए फ़ोन पर बात करते करते मैं धीरे धीरे पीछे सरकने लगी और तुरंत भाग कर बैंक में चली गई और वहाँ जा कर पूरी घटना की जानकारी दी ।बैंक के सुरक्षा गार्ड मेरे साथ बाहर आ्ए लेकिन तब तक वे जा चुके थे।मैंने राहत की साँस ली। इस तरह मैं अपनी जान और माल के साथ एक बहुत बड़ी अग्निपरीक्षा से निकल कर आई थी।
आशा भाटिया