दुनिया इक रिश्तों का मेला

अरुणिता
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 दुनिया इक रिश्तों का मेला

 फिर भी हर इंसान अकेला

जिस पर हो अटूट विश्वास

हरदम रही तलाश जिंदगी

यह मेरा अथवा यह तुम्हारा

कशमकश का नाम जिंदगी

अनदेखी बातों को जानना

हरदम रही तलाश जिंदगी

मैं तलाशती रही उम्र भर

कुछ भूली बिसरी सी यादें

कुछ अनछुए पहलू जीवन के

 हरदम रही तलाश जिंदगी

कहीं दिखते गमों के मंजर

कहीं पर ठहाकों के गुंजन

इंसानियत के पल दो पल

हरदम रही तलाश जिंदगी

दोगला जीवन दोगला व्यक्तित्व

लेकर जीते कैसे लोग यहां

सरल सहज मिले कोईअपना

हरदम रही तलाश जिंदगी

सब पर हो ईश्वर की कृपा

दीन दुखी ना रहे जगत में

मिलकर काम करें जो जनहित में

हरदम रही तलाश जिंदगी

दुनिया इक रिश्तों का मेला

क्यों इंसान फिर भी अकेला

सबको अपना जो समझे

हरदम रही तलाश जिंदगी

अलका शर्मा

 शामली, उत्तर प्रदेश

 

 

 

 

 

 

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