विषमता में समता ढूँढती लेखिका
भरा,पूरा परिवार था मेरा.. एक बेटा ,एक बेटी, सास -ससुर का सानिध्य..खुद से भी ज्यादा चाहने वाला पति, संपन्नता …सब कुछ तो था ..जो एक गृहिणी अपने जीवन में चाहती है... बड़े बुजुर्गों के आशीर्वाद से सिंचित आशियाना ..जिसमें न केवल अपने सास ससुर ,बल्कि उनके मित्रों के आशीर्वाद से भी पूर्णतः संतृप्त रहती थी मैं.. सबकी प्यारी बहू थी मैं..। शुरुआती समय ,परिवार में सामंजस्य बिठाने में कुछ कठिनाई भरा रहा ,लेकिन धीरे-धीरे ,सब की चहेती बन गई थी मैं.।दामन सदैव आशीषों से भरा रहता था। एक ही छत के नीचे बच्चे, बूढ़े और जवान तीनों का साथ था.. अक्सर परिवार में आमोद प्रमोद का माहौल हुआ करता था ..दोनों बच्चे मानो चारों बड़ों की आंखों के तारा थे.. । लेकिन कहते हैं ना कि जीवन समग्र नहीं चलता.. जीवन का नाम ही संघर्ष है.. सब कुछ हासिल हो जाए तो वह आदर्श बन जाता है ,और आदर्श कभी मिला नहीं करता,, मिल जाए तो वो ठहरा नहीं करता.. ऐसा ही एक तूफान मेरी जिंदगी में आया ,और सब कुछ ताश के पत्तों की तरह ढह गया। 2021 में कोरोना में मेरे पति और मेरी सास की दो दिन के अंतराल से मृत्यु हो गई.. मृत्यु के निर्मम प्रहार ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया.. मैं स्वयं मृत्यु का आलिंगन करना चाहती थी, लेकिन सामने खड़ी जिम्मेदारियां जीने को विवश करती थीं। लेकिन कितना ही गहन अंधकार हो ,कोई जुगनू सी रोशनी ,अवश्य ही दिखाई देती है l ऐसी ही एक उम्मीद की रोशनी ,लेखन..मेरी जिंदगी में आई और जीने की वजह मिल गई..। मेरे कुछ प्रिय जनों ने मुझे अत्यंत उत्साह दिया और धीरे-धीरे मेरी लेखनी की रफ्तार बढ़ती गई। यदा कदा लिखने वाली मैं ,प्रतिदिन सृजन करने लग गई। मेरी तीन पुस्तकें आ चुकी हैं , तीसरी राजस्थान साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित है । मेरी कई रचनाऐं प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं। कुछ साहित्यिक पुरुस्कार भी मिल चुके हैं।आकाशवाणी पर भी मेरी कविताएँ प्रसारित हो चुकी हैं ।उपलब्धियां मायने नहीं रखती है..शिखर तो हमेशा खाली ही रहता है.. मायने रखता है ,कठिन समय में उम्मीद की रोशनी मिलना ।एक सकारात्मक सोच के साथ जीवन का आगे बढना। नौकरी, लेखन और घर की जिम्मेदारियों ने मुझे इतना व्यस्त कर दिया है कि ,मुझे पीछे मुड़कर देखने का समय ही नहीं मिलता।वयोवृद्ध ससुर जी का साया सर पर है ,उन्हीं के वट वृक्ष की छाया में नए पौधे यानी मेरे बच्चे पल्लवित हो रहे हैं ..मैं मध्यस्थ कड़ी ,जब उस वट वृक्ष की छाया में नए पौधों का पल्लवन देखती हूं ..तो विषमता में भी समता ढूंढ लेती हूँ। लेखन ने मुझे न केवल जीने की वजह दी ,बल्कि मेरे अंदर आत्मविश्वास भी बढ़ाया ।मैं अपनी लेखनी से विधाओं की परिधि से दूर,जीवन की विधा लिखना चाहती हूं.. मैं ऐसे साहित्य का सृजन करना चाहती हूं ,जिसमें लोग अपना अक्स देखें। मैं लेखन से ख़ुद को तराशकर ,लोगों के जीवन को सँवारना चाहती हूँ..अपनी लेखनी को लोगों का संबल बनाना चाहती हूं। लेखन मेरी रूह में बसता है और मैं इसे प्रेरणा बनाना चाहती हूँ। मैं लोगों को यही संदेश देना चाहती हूँ कि कितना भी विपरीत समय हो उम्मीद का दामन न छोड़ें, गहन अंधकार में भी उम्मीद की कोई न कोई रोशनी अवश्य आती ही है । मेरे अंदर लेखन का जुनून है, जिसे मैं हमेशा जीवित रखना चाहती हूँ ।
रश्मि वैभव गर्ग
कोटा,
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