दर्द की दवा

अरुणिता
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मैं नहीं जानती वह कौन था।यह इत्तफाक ही था कि वह और मैं सिविल लाइन के चौराहे से पैदल साथ ही चल रहे थे। मुझे आगे मोड़ से मुड़ कर दर्जी की दुकान तक जाना था।उसकी मंजिल कहां थी मुझे नहीं मालूम।वह बड़बड़ाता जा रहा था। चलते -चलते कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े।वह जैसे स्वंय से बातें कर रहा था-मैने कुछ नहीं किया, कोई दहेज नहीं मांगा। फिर मुझे दहेज के केस में कैसे फंसाया गया।मैं क्या करुं?

अब मैंने उसे गौर से देखा।मलीन वस्त्र,बढ़ी दाढ़ी,बिखरे से बाल, गमगीन चेहरा। मुझे लगा यह किसी मुसीबत में है। उत्सुकता बस पूंछ बैठी -"सर ,आप स्वंय से बातें कर रहे हैं।आपके साथ कुछ ग़लत हुआ है क्या?मैं आपकी कोई मदद कर सकती हूं"।
उसने मुड़कर मेरी ओर देखा।वह एकदम शांत हो चुका था। जैसे उसे यकीन न हो या वह तंद्रा से वापस लौटा हो।
"हां आप मुझे बताइए।शायद आपकी कोई मदद कर सकूं।"
असमंजस से उसने कुछ पल मेरी ओर देखा। कहूं न कहूं -सोचा। फिर बोला-"क्या बताऊं बहन, उसने मुझे दहेज के केस में फंसा दिया है।वह मेरी पत्नी है। मैंने कोई दहेज नहीं लिया।वे दहेज देने लायक थे भी नहीं।मेरे पास अपने गुजारे लायक सब कुछ था।मैं पत्नी की सभी इच्छाएं पूरी करता।जो मांगती लाकर देता।घर के काम में भी सहयोग करता।बस उसके कहने पर मां से अलग होकर नहीं रह सका। मां का है ही कौन?
मैं मां को अकेली कैसे छोड़ देता।वह आए दिन मां से झगड़ा करती,समय पर खाना न देती।मैं सब देखकर भी चुप था। मां अपना सब काम स्वंय कर लेती।उसकी कभी शिकायत नहीं करती। मां के साथ जुवान चलाने के साथ मारपीट भी करने लगी।
एक दिन मेरे सामने ही मां को पीटने लगी। मैंने पकड़ कर दो चांटे लगा दिए और कहा अभी घर से निकल जा।वह क्रोध में दनदनाती उन्हीं कपड़ों में मायके चली गई और वहीं से पुलिस में शिकायत लिखवाई कि पति और सास दहेज के लिए मारपीट करते हैं।पीटकर घर से निकाल दिया है। पुलिस ने मुझे पकड़ लिया।अभी छूटकर आ रहा हूं।एक मित्र ने जमानत दी।समझ नहीं आ रहा कि क्या करुं?आप मेरी क्या मदद कर सकती हैं।क्या औरत ऐसी होती है।औरत की बात सच मान ली गई।मैं मर्द हूं इसलिए मेरी कोई सुनवाई नहीं। क्यों?
वह मेरे सामने सवाल लिए खड़ा था।मेरे दिल में हलचल मची थी।मैं एक मर्द का दर्द सुन रही थी और निस्तब्ध थी।क्या कहूं, कैसे कहूं,क्या समझाऊं -उसके दर्द की दवा मेरे पास नहीं थी
मैं जानता हूं कि आपके पास भी कोई उपाय नहीं है।मेरी मां और मुझे जेल जाना पड़ेगा वर्ना दस लाख रुपए उसे देने पड़ेंगे। इतने पैसों का इंतजाम घर बेचकर भी नहीं कर सकता।खैर बहन,जो होगा भुगतना तो पड़ेगा। आपने पूंछ लिया इतना ही काफी है।वह हाथ जोड़कर जाने लगा। मैंने मन ही मन कुछ निश्चय किया।अपना कार्ड निकालकर उसे थमाया-"कल दस बजे इस पते पर मिलना।शायद आपके लिए कुछ कर सकूं।"


सुधा गोयल
290-ए, कृष्णानगर,डा दत्ता लेन,
 बुलंदशहर -203001

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