जीवन के लिए पानी की जितनी महत्ता हैं उतनी ही वाणी की महत्ता जिन्दगी में हैं। पानी खारा हुआ तो आर ओ सिस्टम लगा के उसे मीठा किया जा सकता हैं। वाणी के लिए कोई ऐसा प्रावधान हैं क्या?कहावत हैं न,गुड़ से मरता हैं कोई तो ज़हर क्यों दे?मतलब कि प्यार से ,मधुर वाणी से जो काम हो रहा हैं उसे गुस्से से या कड़वी वाणी से क्यों किया जाएं ?
वैसे भी गुस्से को पाशविक की कक्षा में गिना जाता हैं ,राक्षसी अभिव्यक्ति हैं जो क्षणिक हैं ,जब कि प्यार और प्रेम की भावना अनंत हैं।
मधुर वाणी में एक सकारात्मक भाव होता हैं जब कि गुस्से से बोले गए शब्दों में नकारात्मकता का वास होता हैं जिससे सुनने वाले पर मानसिक नकारात्मकता वाला असर होता हैं।जिसका बात का असर भी विपरित हो सकता हैं,मधुर वाणी का असर भी किसी का मन मोह लेता हैं,अपने साथ लाके खाड़ी कर देता हैं,जब आप कडवे शब्द बोलते हो सामने वाला विरुद्ध पक्ष में ही खाड़ी रह जाता हैं।
संत कबीर ने भी कहा हैं,
'ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोई
औरन को शीतल करे आपहूं शीतल होई'
वैसे हर ज्ञान-विज्ञान वर्धक किताबों में यही वाणी के गुण गाएं जातें हैं।
जयश्री बिर्मि
अहमदाबाद, गुजरात